देश है
——- देश है विशेष है डाली कटी पत्ते बिखरे फिर भी जड़ें बहुत शेष हैं देश है ! चेहरे हैं भेष भी चौपालों में खेत में शहर भी परदेस भी परम्पराओं से जुड़े हुए ये मानों केश हैं देश है ! कौन हूँ मौन हूँ क्या बचूँ क्या रहूँ मिट्टियों की धूल बन मुट्ठियों से बहूँ ! कुल्हड़ों में जमी दही ये विशेष है देश है ! ज़मीं किसकी हवा जिसकी वतन किसका जतन जिसका भक्ति जिसकी देश उसका हृदय में धड़कती धड़कनें मात्र लेश हैं देश है ! -द्वारिका उनियाल ——- #HappyRepublicDay 26 January 2019
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January 2024
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